Thursday, October 11, 2012

सब यूँ ही सही क्यों हैं

गर सब सही तो सब यूँ ही सही क्यों हैं
गर सब हैं गलत तो सब ही गलत क्यों हैं

मेरी हाथों की लकीरों में जो हैं वो क्यों हैं
और जो हैं नहीं तो वो नहीं क्यों हैं

हैं सवाल ही सवाल पर इतने क्यों हैं
आर जवाब नहीं इक भी तो ऐसा भी क्यों हैं  

खाली खाली सुने ये सब ये लम्हे क्यों हैं
गर इंतज़ार हैं अब भी तो वो भी क्यों हैं

माना के बेवजह हैं पर ये वजह बेवजह क्यों हैं
सोचता हूँ तुझे पर आखिर सोचता दिल क्यों हैं

लौट कर आ गया फिर वही पर आया क्यों हैं
ख़त्म नहीं होता ये सफर पर ये सफर क्यों हैं 

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