Wednesday, March 9, 2011

मेरा दर्द इस काली सहायी में सिमट आये तो

मेरा दर्द इस काली सहायी में सिमट आये तो,
  जिंदगी भूले से सही कभी मुस्कराए तो||

चाँद तारों को देखता हूँ मैं रोज तन्हा,
कभी वो मुझको अपनी महफ़िल में बुलाये तो||

कई बार अपनी बेकसी की शिकायत करी उनसे,
उन्हें मेरी आँखों की अर्ज समझ आये तो||

वो जो हर रोज मुस्करा के निगाहें हटा लेते हैं,
मेरी बेखुदी का इक पल उन्हें नज़र आये तो||




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