Saturday, August 3, 2013

हे जन !! जाग भाग अब रात जला

हे जन !!  जाग भाग अब रात जला
इस दिल में अब कुछ विश्वास जगा

हैं तेरे ही हाथों में तेरी तक़दीर
उस मौन पत्थर की मूर्त को जता

वो कौन हैं जो तुझे रोके हैं
तेरे सपनो को जो हर पल रोंदे हैं

तू भी इस मिट्टी का बना
उनको जरा अपना हक़ जो जता 

रात दिन जब तू ख़पे  हैं
तभी तो तेरा चूल्हा जले हैं

छीने  फिर भी मुहं से निवाला कोई
तो सिंहों सी दहाड़ लगा

जब गाँव की बेटी बेटी न रहे
बजारों में जब हो उनकी आबरू रुसवा

न चुप बेठ  न आसूं बहा
बन नरसिंह  पाप को जड़ से मिटा

क्यों दरिद्रता तेरे ही खातें में
मिले क्यों हर बार झूठा वादा  बाटें  में

क्यों तेरे घर में रहे कला सा उजाला
पूछ जरा उनकी जगमगाती रातों से

बच्चों को तेरे भर पेट खाना नहीं हैं
स्कूल क्यों उनका आना जाना नहीं हैं

बीनते हैं क्यों कूड़ा झुलसती गर्मी में
हो बेसहारा तो क्यों उनका कोई सहारा नहीं हैं


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