Saturday, December 8, 2012

आसुओं भरी हैं रातें

आसुओं भरी हैं रातें
दिन मेरे जगमगा रहे है
दुनिया हैं बड़ी अजीब ये
सह रहे हैं सब फिर भी मुस्करा रहे है


जाने ये क्या बला है
किसीको यहाँ क्या मिला हैं
किसको मैं कहूं अपना यहाँ
हर चीज़ को ये अपना बतला रहे हैं


न जाने वो लड़ रहे हैं किसी से
मुझे बचा रहे हैं बता रहे हैं
मुझे फिक्र नहीं अपनी जरा भी
फिर भी मुझे मेरी फिक्र जता रहे हैं

अंधेरो से डरते हैं वो
आग हर जगह लगा रहे  हैं
रोशनियों का शहर हैं ये
अंधेरों को न जाने कहाँ  छुपा रहे हैं



 

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