सोचता हूँ ये पिंजरे में बंद पंछी कैसे होंगे
फिर लगता हैं कुछ हम जैसे ही होंगे
रोज ही तो कहता था आँखों से हाल मेरे
सोचता हूँ कभी तो तुमने सुने ही होंगे
अभी अभी लौटा हूँ उस बस्ती से यार
शायद वहाँ कभी इंसान रहते ही होंगे
मानो या न मानो वो बला की हसीन हैं
फरिश्ते भी उसे मुड़ मुड़ के देखते ही होंगे
ठंड इतनी हैं की नब्ज़ जम ही जाये
फुटपाथ पे तो दो चार मरे ही होंगे
आज गंगा नहाया हूँ बरसों बाद
कुछ बरस के पाप तो धुले ही होंगे
कुछ अच्छे काम भी कर लूं शफ़क
आज कल तो जहन्नुम के रस्ते भीड़ भरे होंगे
फिर लगता हैं कुछ हम जैसे ही होंगे
रोज ही तो कहता था आँखों से हाल मेरे
सोचता हूँ कभी तो तुमने सुने ही होंगे
अभी अभी लौटा हूँ उस बस्ती से यार
शायद वहाँ कभी इंसान रहते ही होंगे
मानो या न मानो वो बला की हसीन हैं
फरिश्ते भी उसे मुड़ मुड़ के देखते ही होंगे
ठंड इतनी हैं की नब्ज़ जम ही जाये
फुटपाथ पे तो दो चार मरे ही होंगे
आज गंगा नहाया हूँ बरसों बाद
कुछ बरस के पाप तो धुले ही होंगे
कुछ अच्छे काम भी कर लूं शफ़क
आज कल तो जहन्नुम के रस्ते भीड़ भरे होंगे
No comments:
Post a Comment