दे थोड़ा दर्द मुझे,
के फिर न कभी बेदर्द कहलाऊँ ।
मेरी भी हो कोई दास्ताँ ,
कुछ कहानियाँ मैं भी तो सुनाऊँ ।
कौन कहता हैं के कोई बात हैं
मैं तो कुछ भी न सुन पाऊँ
क्या कहते हैं ये सब के सब
कुछ भी शायद न मैं समझ पाऊँ
माना के जा रहे हो तुम
न कभी फिर तुम से मिल पाऊँ
हो इक तो मुलाकात वो
जिसकों ताउम्र न मैं भुला पाऊँ
क्या सही हैं हैं क्या गलत
इश्क में इस कुछ भी न समझ पाऊँ
कर न शिकायत बेरुखी की मुझ से यूँ ही
कभी कभी तो मैं खुद को ही भूल जाऊं
के फिर न कभी बेदर्द कहलाऊँ ।
मेरी भी हो कोई दास्ताँ ,
कुछ कहानियाँ मैं भी तो सुनाऊँ ।
कौन कहता हैं के कोई बात हैं
मैं तो कुछ भी न सुन पाऊँ
क्या कहते हैं ये सब के सब
कुछ भी शायद न मैं समझ पाऊँ
माना के जा रहे हो तुम
न कभी फिर तुम से मिल पाऊँ
हो इक तो मुलाकात वो
जिसकों ताउम्र न मैं भुला पाऊँ
क्या सही हैं हैं क्या गलत
इश्क में इस कुछ भी न समझ पाऊँ
कर न शिकायत बेरुखी की मुझ से यूँ ही
कभी कभी तो मैं खुद को ही भूल जाऊं
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