Wednesday, May 25, 2011

मुझे पहचानते हो या नहीं तुम

मुझे पहचानते हो या नहीं तुम|
   मुझे इस कशमकश में न तुम डालो||


तेरी आँखों से ही पायी हैं जिंदगी मैंने,
  रहने दो आज चहरे पे न नकाब डालो||

न जाने क्या सोचते हो तुम-2|
 अपने ख्यालों से न मुझे बाँध डालो||


में दीवाना हो नहीं सकता,मेरी मजबूरियां बहुत हैं |
मुझे इतना न खीचों-२, के तुम मुझे तोड़ डालो||


पीनी मैंने छोड़ दी हैं,शहर भर को पता हैं |
मुझे महफ़िल में बुला के , "शफ़क" दोराहें पर न डालो||





Friday, May 13, 2011

इतनी ख़बर हैं के अब बेख़बर कोई नहीं

इतनी ख़बर हैं के अब बेख़बर कोई नहीं|
   जो हुआ आग़ाज तो अब कोई भी बेअसर नहीं||

निकल पड़ें हैं कुछ दीवाने छिनने आज़ादी को|
     सुना हैं गोलियों का मशालों पे कोई असर नहीं||

जिस ज़मी ने जीवन दिया, उस पे लहूँ बहा रहे|
    कितने मतवाले हैं वो,जिन्हें जिंदगी से कोई मोह नहीं||



दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले

दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले|
     किसी ने मेरी रूह को लूटा, किसी से जख्म हज़ार मिले||

हर आदमी से कोई न कोई नाखुश हैं यहाँ|
     हर कोई खुश हो जिससे, ऐसा इसां कहाँ मिले||

कल तक जो लहलहाता था,दरख्त पे उस आज एक पत्ता नहीं|
      ताउम्र हरा रह सके, ऐसा दरख्त कहाँ मिले||

हजारों ख्वाहिशे ले के फिरते हैं लोग यहाँ|
        हो न कोई खवाहिश जिसकी, वो बंदा ख़ुदा का कहाँ मिले||


दस्तक दे रहा हैं क्यों कोई मेरे दरवाजे पर

दस्तक दे रहा हैं क्यों कोई मेरे दरवाजे पर,
         कौन सी आफत ले आयी उसे इस मयखाने तक||

इस तूफां में भी उम्मीद है कुछ चराग रोशन रखने की,
    देखते हैं क्या बचता हैं तूफां के गुजर जाने पर||

सोचते हो क्यों नहीं बयाँ करते हम हाले दिल अपना|
        क्या करे मज़ा आ रहा हैं, जीने में इक उम्मीद पर||

हो गए हैं कुछ लोग दोस्त हमारे भी  "शफ़क" |
   देखते हैं कौन संभालता हैं हमें बुरा वक़्त आने पर||