मेरी हसरतों में बस गयी हैं तू
और जाती भी नहीं हैं न जाने क्यों
मेरी जिंदगी में रच बस गयी हैं तू
और न ये जिंदगी उजड़ती हैं न जाने क्यों
ख्वाब तो देखे थे मगर जीने की रही न कोई ख्वाहिश उनको
तेरा इंतज़ार तेरे बाद भी ख़तम न हुआ न जाने क्यों
कौन समझा पाता हमें जब समझना ही हम न चाहे
दिखी रही थी हक़ीकत हर पल पर हुआ न मैं रूबरू न जाने क्यों
अब जब हैं बस तन्हाइयां सिर्फ चुपचाप सी तन्हाइयां
जिंदगी बन गयी हैं सवाल सी न जाने क्यों
और जाती भी नहीं हैं न जाने क्यों
मेरी जिंदगी में रच बस गयी हैं तू
और न ये जिंदगी उजड़ती हैं न जाने क्यों
ख्वाब तो देखे थे मगर जीने की रही न कोई ख्वाहिश उनको
तेरा इंतज़ार तेरे बाद भी ख़तम न हुआ न जाने क्यों
कौन समझा पाता हमें जब समझना ही हम न चाहे
दिखी रही थी हक़ीकत हर पल पर हुआ न मैं रूबरू न जाने क्यों
अब जब हैं बस तन्हाइयां सिर्फ चुपचाप सी तन्हाइयां
जिंदगी बन गयी हैं सवाल सी न जाने क्यों
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