कशमकश में हैं क्या,
क्या सोचे हैं तू क्या गया
जो था ही नहीं कहीं इक लम्हा,
वो आया नहीं तो हैं क्या
कशमकश में हैं क्या ...
जो खुल के कभी बरसा नहीं,
ऐसे सावन का करता भी तू क्या
जो हमेशा रहा ग्रहण से छुपा,
ऐसे चाँद का करता भी तू क्या
कशमकश में हैं क्या ...
जो निगाहें कहती रही के तू कौन हैं,
ऐसी निगाहों में बस के करता भी क्या
जो उलझे रहे गम से सदा,
ऐसे रिश्तों का करता भी क्या
कशमकश में हैं क्या ...
जो चलती चलें और कहीं न मिले,
ऐसी दास्तानों का करता भी क्या
जो मिल जाती भीख में पल को और जिंदगी,
ऐसी जिंदगी जी के करता भी क्या
कशमकश में हैं क्या ...
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