Saturday, November 27, 2010

आज के शहरों को न जाने क्या हो गया हैं

आज के शहरों को न जाने क्या हो गया हैं,
    हर चोराहें पे बिकता हैं यहाँ आदमी ||

कभी भी सच को खरीदना इतना आसाँ न था,
    दाम लगा के तो देखों बिकता हैं इन्साफ भी||

भूल जाओं के गाँधी कभी पैदा  हुआ था यहाँ,
       गाँधी के नाम का तो बस नोट ही चलता हैं यहाँ||

इक सी ही लगेगी तुमको तस्वीर हर जगह,
       पैसे से ही तो रंगी हैं हर शय यहाँ ||

में इस बैचेनी में हूँ ऐसे कब तक जीऊँगा यहाँ,
     क्या करें मरने पे भी पैसा लगता हैं यहाँ||

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