आज के शहरों को न जाने क्या हो गया हैं,
हर चोराहें पे बिकता हैं यहाँ आदमी ||
कभी भी सच को खरीदना इतना आसाँ न था,
दाम लगा के तो देखों बिकता हैं इन्साफ भी||
भूल जाओं के गाँधी कभी पैदा हुआ था यहाँ,
गाँधी के नाम का तो बस नोट ही चलता हैं यहाँ||
इक सी ही लगेगी तुमको तस्वीर हर जगह,
पैसे से ही तो रंगी हैं हर शय यहाँ ||
में इस बैचेनी में हूँ ऐसे कब तक जीऊँगा यहाँ,
क्या करें मरने पे भी पैसा लगता हैं यहाँ||
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