मुझे न देखते हो तो,
देखते हो उस आइने को क्यों|
इतने भी जाहिल हम नहीं,
पास आतें घबरातें हो क्यों||
मुक्कदर की बात हैं,
वरना गरीब पैदा कोई हूए ही क्यों|
ठिकाना हो तो न सोयें सड़क पर,
तुम्हारी आँखों का नासूर बने ही क्यों||
घर में शराब और नहीं,
वरना एक जाम पर हम रुके हैं क्यों|
आजादी का दिन हैं पर पीने की नहीं,
ऐसी आजादी से हम उब न जायें क्यों ||
शुक्र कर जन्नत का लालच तो हैं,
वरना कोई तेरे दर पे आयें क्यों||
"शफक" कितनी मशरूफ हैं दुनियां,
किसी को खुदा यूँ ही याद आयें क्यों ||
Sunday, September 26, 2010
Friday, September 24, 2010
तुम यों ही कह देते
तुम यों ही कह देते,
हम खुद ही चले जाते||
न जाने क्यों करने पड़े,
इतने सवाल जवाब तुम्हें ||
आज यों ही याद आ गयी,
कभी तुम भी खुद आ जातें||
दूरियाँ इतनी तो कभीं न थी,
के बुलावा भेजकर बुलाना पड़े तुम्हें||
बीत गयी जिंदगी इसी वहम में,
के हम न होते तो कई काम रूक जातें||
अब हम नहीं हैं,
और याद भी अब नहीं आतें हम तुम्हें||
आज यूँ ही परेशान नहीं हूँ,
वरना क्यों हम मयखाने जाते||
नज़र बदल गयी हैं तुम्हारी "शफ़क",
शराब दिखती हैं अशक़ आँखों में नहीं तुम्हें||
हम खुद ही चले जाते||
न जाने क्यों करने पड़े,
इतने सवाल जवाब तुम्हें ||
आज यों ही याद आ गयी,
कभी तुम भी खुद आ जातें||
दूरियाँ इतनी तो कभीं न थी,
के बुलावा भेजकर बुलाना पड़े तुम्हें||
बीत गयी जिंदगी इसी वहम में,
के हम न होते तो कई काम रूक जातें||
अब हम नहीं हैं,
और याद भी अब नहीं आतें हम तुम्हें||
आज यूँ ही परेशान नहीं हूँ,
वरना क्यों हम मयखाने जाते||
नज़र बदल गयी हैं तुम्हारी "शफ़क",
शराब दिखती हैं अशक़ आँखों में नहीं तुम्हें||
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