Friday, October 2, 2009

में सोचता हूँ , के वो क्यों न हुआ

में सोचता हूँ , के वो क्यों न हुआ।

जो होता तो,न जाने क्या क्या होता॥

इस गली से थोड़ा आगे,उस बाग़ के किनारे।

अपना भी एक छोटा सा आशियाँ होता॥

घर के दरवाजें होते कत्थई रंग के, खिड़कियों पे परदे होते कुछ हलके रंग के।

घर की दीवारों पे, तेरी मेरी तस्वीरें होती॥

हर दिन शाम को,तुम करती मेरा इन्तेजार ।

में आता ले के , तेरे चेहरे पे एक मीठी सी मुस्कान॥

ऐसे दिन होते तो कैसा होता, हर सुंदर सपना सच होता तो कैसा होता।

जिंदगी यूँ ही मेरहबान होती,तो हर लम्हा कितना खुबसूरत होता ॥

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