आग नहीं धुआं नहीं ,
फिर भी कुछ जलता हैं ऐसा लगता हैं|
मुसाफिर पूछता हैं इस शहर में ईमान का पता ,
रास्ता भटक गया हैं ऐसा लगता हैं|
भगदड़ हैं मंजिल हर किसी को हैं पानी,
मर गया जमीर इस दौड़ में ऐसा लगता हैं|
दुख देख के किसी का आते नहीं आंसू,
काल पड़ा हैं आसुओं का ऐसा लगता हैं |
सोने के मन्दिर में बेठा वो कभी बाहर नहीं आता,
उसको भी हो गई आदत ऐसा लगता हैं|
फिर भी कुछ जलता हैं ऐसा लगता हैं|
मुसाफिर पूछता हैं इस शहर में ईमान का पता ,
रास्ता भटक गया हैं ऐसा लगता हैं|
भगदड़ हैं मंजिल हर किसी को हैं पानी,
मर गया जमीर इस दौड़ में ऐसा लगता हैं|
दुख देख के किसी का आते नहीं आंसू,
काल पड़ा हैं आसुओं का ऐसा लगता हैं |
सोने के मन्दिर में बेठा वो कभी बाहर नहीं आता,
उसको भी हो गई आदत ऐसा लगता हैं|
No comments:
Post a Comment