Monday, December 28, 2015

Who knows?

Who knows ? What is in end?
Do you?
Whether you will die  young or live till the point of getting bored with life 
Will it be a beautiful day of sunshine? Or dark wet and windy?
Who knows? Do you?
Will you be remembered as you would like to? Or will be forgotten the way they do?
Will it matter to someone that you are no more? Or they'll keep business as usual as they do?
Who knows? Do you?
What if all this is just a dream or may be we can only relate to it as a dream.
Will He ever wake me up?  Or let me find out myself one day.
Or there is nobody.
Who knows?  Do you?

Thursday, October 29, 2015

न बुझने दो ये चराग जलाएं रखना

न बुझने दो ये चराग जलाएं रखना
नाउम्मीदों के हो चाहें कितने वार
उम्मीद कही दिल में बचाये रखना

चाहें  उम्र निकल जाये  आधी
हो आँखे बोझल, साँसे भारी
बच्चों सी कही थोड़ी शरारत
जवानो सी कही मन में छटपटाहट
बचाये रखना

समय लील जाएं गर तेरा सब कुछ
भटका हुआ हो जिंदगी की राहों में गर कुछ
सवारना खुद को टुकड़ा टुकड़ा
घर को लौटना पल पल चाहें थोड़ा थोड़ा 

कल, जाने कहाँ जायेंगे कल

कल, जाने कहाँ जायेंगे कल
यादों में तेरी बन के इक धुंधला सा पल

तेरे बालों में इक सफेदी सलेटी बन
कभी किसी बात पे, इक छोटी सी मुस्कराहट बन
याद शायद तुम्हें कभी ही आएंगे आयेंगे
आज जो लगते हैं गुजरते हुए भारी  से पल

आज नहीं तो कल तुम किसी का हाथ थाम ही लोगे
शायद जीओगे जीने की तरह किसी का सहारा बन
जो बस वीरानो में अपनी आवाज़ सुनते थे
महफ़िलों में बिखर जाओगे इक गीत बन

अभी जो आँखों की सुर्खियां छुपाये फिरतें हो
नम आखों को बेबस सी हंसी से दबाएं फिरते हो
कल होंगे इन आखों में फिरते उजाले
बांटते फिरोगे खुशियाँ जहां में बहार बन 

Saturday, December 13, 2014

सही कहा "शफ़क़"...

वो लेने आया हैं फसल का कुछ हिस्सा
क्या करे पसीना बहा तो अपना , पर जमीं तो उसकी ही हैं॥

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वो देता रहा ताकीद बात बात में मुझे
के कुछ तो खुदा  से डर ।
और  नासमझ में सोचता रहा ,
मैं जब हूँ खुदा का तो डर  काहे  का ॥


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बस्ती हैं बाजार हैं रौनकें हैं
और जिंदगी का शोरोगुल भी ।
खुदा  दो चार इंसान बस भेज दे
तो दिल तेरी कायनात में लग ही जाए ॥

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मेरी ढलती हुई उम्र और पकते हुए  बालों का रौब देखिये
दुनिया पूछने लगी हैं मुझसे दुनियादारी के कुछ अटपटे से सवाल ॥

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पता तो था न आएगा कोई जनाज़े पे मेरे
फिर भी रखने को इज़्ज़त शहर की बरामदा खाली  करवा लिया था मैंने ॥
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सही कहा "शफ़क़" के बुराई ले के कोई नहीं मरता
गर मरता तो ये जहां  हर गुजरते वक़्त ओर  बुरा न होता ॥
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वो दरख़्त बूढ़ा  हो चला हैं ,कुछ तो उसका एहतराम कर
यों गाहे बेगाहे उस पे , कील से इश्तेहार न  टांगा  कर ॥
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सुना हैं घंटों चली हैं बहस हमारे एक जुमले पर
अजब हैं दुनिया ,हमने वो  कहा उसपे इतिना सोचा न था ॥

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वो पूछता हैं हमें अब भी नींद क्यों नहीं आती
क्या बताते , ये सोचकर नहीं आती के वो सोता होगा चैन से हमें भुला कर ॥
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इस हाल की वजह न पूछ मेरे दोस्त
वो मुझे ले डूबा या उसकी यादेँ , इसका फैसला अभी बाकी हैं ॥