मेरा दर्द इस काली सहायी में सिमट आये तो,
जिंदगी भूले से सही कभी मुस्कराए तो||
चाँद तारों को देखता हूँ मैं रोज तन्हा,
कभी वो मुझको अपनी महफ़िल में बुलाये तो||
कई बार अपनी बेकसी की शिकायत करी उनसे,
उन्हें मेरी आँखों की अर्ज समझ आये तो||
वो जो हर रोज मुस्करा के निगाहें हटा लेते हैं,
मेरी बेखुदी का इक पल उन्हें नज़र आये तो||